भाषा - हिन्दी
पृष्ठ संख्या - 117
मैक्समूलर ने अपनी बहुअर्थी लेखनी की आड़ में आजीवन वेदों को विरुपित किया, फिर भी वह अपने को हिन्दु धर्म का हितैषी होने का ढोंग रचता रहा ।
इस बात के इतने पक्के, सच्चे और आश्चर्यजनक प्रमाण हैं कि कोई भी तर्क उसे वेदों के विकृतीकरण के दोष से बचा नहीं सकता ।