भाग 1 और भाग 2 के साथ
(पेज - 111)
इस पुस्तिका के लिखने के पीछे उद्देश्य यह रहा है कि लोग अपनी जरूरत की अधिकांश वस्तुएं अपने घर में ही बना सकें या चाहें तो थोड़ी सी पूँजी लगाकर अपना उद्योग-धन्धा शुरू कर सकें और स्वावलंबी बनें। मेरी उत्कृष्ट इच्छा है कि भारत की धरती से बहुराष्ट्रीय कंपनियों का साम्राज्य नेस्तनाबूद हो और यह देश स्वावलंबी और उद्योगी राष्ट्र बनकर एक बार फिर से सारे संसार का सरताज बने। परंतु यह तभी हो सकता है जबकि हम लोग विदेशी सामानों के मोहपाश से छूटकर अपने जीवन में स्वदेशी अपनाने का संकल्प धारण करें।
आज इस देश में बेरोजगारों की एक विशालकाय फौज खड़ी हो गई है। यह हरकत में आएगी तो देश का ही विनाश करेगी। सरकारों के पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं है। वे समाधान के प्रति ईमानदार भी नहीं हैं, क्योंकि बेरोजगारी जैसे मुद्दे के सहारे उनकी राजनीति सधती है। ऐसे में देश के बेरोजगार युवकों से मेरी अपील यही है कि वे नौकरियों के पीछ बहुत समय न गँवाते हुए स्वदेशी उद्योग-धन्धे खड़े करने के काम में लगें तो उनका और राष्ट्र, दोनों का भला होगा। इस देश में स्वावलम्बन की अपार संभावनाएं हैं। प्राकृतिक संसाधनों की भरभार है व पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं, फसलों की विविधताएं है, खनिज संसाधन है, काम करने वाले अनगिनत हाथ है, और असली बात यह है कि हमारे देश में प्रतिभा है। जरूरत सिर्फ दृढ़ संकल्प जगाने की है, हम बहुत कुछ कर सकते है। सचमुच आज देश में स्वदेशी व्यवस्था कायम करने की महती आवश्यकता है, अन्यथा, बहुराष्ट्रीय कंपनियों की खतरनाक किस्म की आर्थिक गुलामी से हम बच नहीं पाएंगे।